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रहस्यमाई चश्मा भाग - 65






आदिवासी समाज अपनी मुहबोली बेटी के कई दिनों कि भयंकर निद्रा से जगने और यादास्त चले जाने से बहुत चिंतित था अब शुभा की स्थिति बहुत ही चिंतनीय हो गयी थी वन प्रदेश के शिवालय के मुख्य पुजारी सर्वानद गिरी तो सर्वाधिक परेशान थे क्योकि शुभा की देख रेख बहुत कठिन होता जा रहा था हालात यह था कि मन्दिर तहखाने में शुभा जाती ही नही जिसके कारण मंदिर के पुजारी अपनी अपनी पारी से शुभा कि देख रेख करते शुभा कि स्थिति ऐसी थी कि वह अपना नित्य कर्म भी कर सकने में असमर्थ होती जा रही थी,,,



आदिवासी समाज के मुखिया चन्दर के कहने पर एव पुजारी सर्वानद के अनुरोध पर आदिवासी महिलाएं आती और शुभा को नित्य कर्म कराती लेकिन शुभा कि इस अत्यंत चिंतनीय स्थिति में भी एक बात खास थी वह सदैव शिवालय के शिवलिङ्ग के पास ही बैठी रहती थी पूरे ब्रह्मांड का विश्वास है जब सारे रास्ते बंद हो जाते है और चारो तरफ घनघोर अंधेरा छा जाता है तब नए प्रकाश कि किरण नए रास्ते संभावनाओं को जन्म देती है आदिवासी समाज संत समाज चन्दर एव सर्वानद सभी शुभा के विषय मे हताश निराश हो चुके थे स्थिति यहॉ तक पहुंच चुकी थी कि सब अब शुभा कि पीड़ा देख कर उसकी मुक्ति के लिए ही प्रार्थना करने लगे शुभा को आदिवासी समाज ने पांच वर्ष पूर्व वनप्रदेश में लाये थे तबसे उसकी दशा में कोई सुधार तो नही हुआ था,,,,


 बल्कि निरंतर दशा खराब ही होती जा रही थी जो चिंतनीय थी सारे आध्यात्मिक अनुष्ठान असफल होते जा रहे थे कोई जड़ी बूटी दवा काम नही कर रही थी सभी शुभा को लेकर हताश निराश थे कोई भी तरीका इलाज कारगर नही हो रहा था आदिवासी समाज एव संत समाज हताश निराश हो चुका था और अब शुभा से मुक्ति की इच्छा से ही ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे दिन बीतते जा रहे थे ।पूर्णिमा की रात थी चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं से क्षितिज पर प्रखर निखर था संत समाज मंदिर के तहखाने में शयन कर रहा था बीच बीच मे कोई ऊपर गर्भगृह में आकर शुभा को देख जाता शुभा एकदम पत्थर कि मूरत बनी बैठी रह्ती ज्यो ही निश्चल गिरी जी शुभा को देख कर मंदिर के तहखाने में लौटे कुछ देर बाद शुभा के जोर जोर से चिल्लाने की आवाजें आने लगी संत समाज के सभी लोग एक साथ उठ कर मंदिर के तहखाने से गर्भगृह में पहुचे वहां का दृश्य देखकर सभी ढंग रह गए,,,,,



शिवालय के गर्भ गृह का दरवाजा खुला था और नाग फन उठाये क्रोधित मुद्रा में बैठे थे जिसे देखकर संत समाज दंग रह गया शुभा का कही आता पता नही था चन्द्रमा क्षितिज में अपनी यात्रा के मध्यान से आगे निकल चुके थे संत समाज ने यह मॉन लिया यह ईश्वर कि कोई विशेष कृपा है जिसके कारण शुभा को तो मुक्ति मिल ही गयी साथ ही साथ संत समाज पर शिथिलता का अपयश भी नही लगा इतने घनघोर वन प्रदेश में शुभा का बचना मुश्किल था जंगल के खूंखार जानवर और शुभा की यादास्त का ना होना और खुद को सुरक्षित बचा पाना लगभग असंभव था अतः संत समाज सुबह कि प्रतीक्षा करने लगा,,,,,


 कि शायद शुभा का जीवित या मृत पता लग जाय क्योकि संत समाज को पूरा यकीन था कि शुभा बहुत दूर नही जा सकेगी और जंगली खूंखार जनवरों का शिकार हो जाएगी किसी तरह से संत समाज ने रात काटी सुबह हुई और संत समाज शुभा की खोज में निकला आदिवासी महिलाएं शुभा के नित्य कर्म के लिए आई उनको जब पता चला कि शुभा कही लापता हो चुकी है तो लौटकर आदिवासी समाज के मुखिया चन्दर को शुभा के लापता होने की जानकारी दी चन्दर भगा भगा आदिवासी नौजवानों के साथ वनप्रदेश के शिवालय आया सर्वानद से शुभा के लापता होने की जानकारियां आदिवासी समाज ने प्राप्त किया और संत समाज के साथ खोजने का एक और प्रयास किया बहुत कोशिशों के बावजूद भी शुभा का कोई पता नही चला,,,,


आदिवासी समाज एव संत समाज दोनों ने मान लिया कि शुभा को खूंखार जंगली जानवरों ने अपना आहार बना लिया होगा आदिवासी समाज एव संत समाज ने भारी एव आहत मन से सच्चाई स्वीकारते हुए अपने अपने दैनिक क्रियाकलापों में व्यस्त हो गए ।शुभा पूरी रात जंगलों में इधर उधर भटकती रही और सुबह पौ फटते ही वह वन प्रदेश से बाहर सुन सान सड़को पर चलती जा रही थी जब भी वह किसी बच्चे को देखती सुयश कहते हुये पुकारती बच्चे भय से उसके पास नही आते दिन बीता रात बीती जहाँ शुभा को बैठना होता बैठती सोती फिर चलती जाती बच्चे चिढ़ाते वह कुछ नही बोलती कोई बच्चा उंसे पत्थर मारता तब भी नही बोलती पैर में छाले सर पर पत्थरो के घाव अब तो कपड़े भी मैले कुचैले हो चुके थे,,,,


 लेकिन शुभा पत्थर के मार खाती जो मिलता कचड़े से बिनती खाती कुल मिलाकर शुभा कि स्थिति जब वह सुयश को खोजने निकली थी उससे भी बदत्तर हो चुकी थी लगभग वह अपने जीवन के अंतिम छड़ो में पहुच चुकी थी और वह पश्चिम बंगाल के कलकत्ता शहर पहुंच चुकी थी वह कलकत्ता कि गलियों मोहल्ले में घूमती चिथड़ा लपेटे कही सो जाती क्योकि वह मानसिक रूप से बीमार नही थी सिर्फ उसकी यादास्त चली गयी थी जिसके कारण वह अपनी पिछली जिंदगी भूल चुकी थी प्रत्येक शुक्र्वार को सेठ शिव नारायण दक्षिण काली मंदिर माता के दर्शन के लिए जाते उस दिन भी शुक्रवार का ही दिन था,,,,,,



शिवनारायण जब घर से निकले घर से कुछ ही दूरी पर उन्हें कचरे के ढेर पर बैठी एक औरत नजर आयी शिवनारायण बहुत ही दयावान एव दान धर्म प्रबृत्ति के व्यक्ति थे वे हर शुक्रवार को कुछ न कुछ गरीबो के लिए दान पुण्य करते रहते उनकी नजर जब जब कचरे ढेर में बैठी औरत पर पड़ी लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नही दिया जब कुछ दूर उनकी कार ड्राइवर लेकर आगे निकल गया तब उनके मस्तिष्क में कचरे के ढेर पर बैठी उस औरत की छवि उभरी वे आश्चर्य चकित रह गए और मन ही मन यह विचार करने लगे ऐसा कैसे हो सकता है भारत सरकार ने बटवारे के दंगों में मारे गए जिन परिवारों कि सूची जारी की गई थी उसमें यशोवर्धन सुलोचना दोनों बेटों एव शुभा का नाम सम्मिलित था तो कचरे के ढेर पर बैठी औरत शुभा कैसे हो सकती है,,,


 शिवनारायण ने अपने ड्राइवर को कार मोड़कर कचरे के पास रोकने का आदेश दिया ड्राइवर गौरांग ने कार तुरंत मोड़ दी और कचरे के सामने रोक थी शिवनारायण ने देखा की वह औरत अब भी कचरे पर बैठी है और अपने पेट भरने के लिए कुछ चीजें बिन रही है जिससे पेट भर सके शिवनारायण उस औरत के पास स्वंय गयेऔर देखते ही जैसे वह दंग रह गए कि यह तो शुभा है जिसके बदन से भयंकर दुर्गंध आ रही थी और मैले कुचैले चीथड़ों में वह लिपटी थी शिवनारायण ख्यालों में खो गए उन्हें कॉलेज के दिन याद आ गए जब शुभा प्रतिदिन नए नए परिधानों में आती थी उंसे कालेज छोड़ने उस दौर की कीमती करो से छोड़ने ड्राइवर आता और ले जाता था उसके पिता यशोवर्धन कालेज के लिए जितना दान देते कोई कल्पना भी नही कर सकता था,,,,

जारी है








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2 Comments

KALPANA SINHA

05-Sep-2023 12:15 PM

Very nice

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Varsha_Upadhyay

04-Sep-2023 09:32 PM

V nice

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